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युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

आठ

 

राम ने सागरदत्त की ओर देखा, "तैयार!"

"तैयार!" सागरदत्त मुस्कराया।

"सारा कार्य योजना के अनुसार होना चाहिए।" राम का स्वर आदेशात्मक था, "बिना आदेश पाए कोई परिवर्तन मत करना। अपने साथियों को भी समझा दो।"

"ऐसा ही होगा आर्य!" सागरदत्त उत्साह के साथ मुस्कुराया, "चाहे यम आकर सामने खड़े हों, आपकी आज्ञा पाए बिना कोई अपने स्थान से नहीं डिगेगा।"

पहले जलपोत पर स्वयं राम तथा सागरदत्त थे। जलपोत में उसकी पूरी क्षमता भर, छोटो-बड़े पत्थर भरे हुए थे। उसके दोनों ओर एक-एक खाली नौका चल रही थी जिसे सागरदत्त के साथी मछुआरे नाविक खे रहे थे। जलपोत चल पड़ा, उसे चलाने वाले मछुआरे नाविकों ने पहले कभी इतने बड़े जलपोत नहीं चलाए थे; किंतु उसे चलाने में उन्हें कोई विशेष कठिनाई नहीं हो रही थी। वे अपने सामूहिक दायित्व के भरोसे उसे चलाए लिए जा रहे थे। चलने के पश्चात् से राम एक शब्द भी नहीं बोले थे। वे या तो आगे आने वाले जल को देखते जा रहे थे; या उन्होंने दो-तीन बार पीछे मुड़कर दूसरे जलपोत को देखा था; जो उनके आदेश से ही अपने स्थान पर रुका हुआ था और चलने के लिए उनके संकेत की प्रतीक्षा कर रहा था। उस पोत में लक्ष्मण और नल थे। उनके भी दोनों ओर एक-एक नौका साथ चलने को तैयार खड़ी थी...

जब पहला जलपोत, दूसरे से इतना आगे निकल गया कि उन दोनों की गति का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं रही, तब राम ने पिछले पोत को चलने का संकेत किया।

अब पहला पोत स्थिर गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था। आधे प्रहर तक गहरे पानी में चलने के पश्चात् वह अपेक्षाकृत उथले पानी में आ गया था और उस सोए हुए अप्रवाही जल की ओर बढ़ रहा था, जिसे सागरदत्त के साथी 'स्तिया' कहते थे...। 

क्रमशः पोत की गति धीमी होती गई और उसे चलाने के लिए नाविकों को अधिक परिश्रम करना पड़ रहा था। यह स्पष्ट संकेत था कि पानी की गहराई और भी कम होती जा रही थी।

"नीचे जलमग्न शिलाएं आनी आरंभ हो गई हैं।" सहसा सागरदत्त ने राम से कहा, "हमारी नौकाओं के चप्पू छोटे होते हैं, इसलिए ये शिलाएं हमारे लिए बाधा नहीं बन पातीं; किंतु पोत के चप्पू अड़ने लगे हैं।"

राम का मुख पहले से कुछ प्रसन्न दीखा, "भय तो नहीं लगेगा सागरदत्त?"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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